स्वर्णपंखी हंस
The Golden Swan
एक बेर, एकटा पोखरि मे सुनहुला पंख बला एकटा हंस रहैत छल। ओही पोखरिक कात मे एकटा निर्धन स्त्री अपन दू टा बेटीक संग रहैत छल। ओ ओहि निर्धन स्त्रीक दुख देखलकै आ अपन सुनहुला पंख द'क' ओकर मदति करबाक बारे मे सोचलक। शीघ्रहि, ओ स्त्री एकटा आरामदायक जीवन जीब' लागल, मुदा समय बितलाक संग ओ लोभी भ' गेल आ ओकर सबटा पंख लेबाक लेल हंसकेँ मारबाक प्रयास केलक। एहि सँ हंस क्रोधित भ' गेलै आ कहलकै जे आब ओ कहियो नहि आओत। जाबत ओ स्त्री अपन दोष बूझि सकितय, ताबत बड्ड देरी भ' गेल रहए।